Himachal to Aanandpur Sahib Tour 2023 Orgenized by RMJ Himachal

Himachal to Aanandpur Sahib Tour 2023 Orgenized by RMJ Himachal
Himachal to Aanandpur Sahib Tour 2023 Orgenized by RMJ Himachal
RISING MOUNTAIN JOURNEY of Himachal (RMJ Himachal) ने 03 दिसम्बर 2023 रविवार को आनंदपुर सहिव अथवा विरासत-ए-खालसा के लिए एक दिन का Tour Orgenize किया है. जोकि RISING MOUNTAIN JOURNEY of Himachal (RMJ Himachal) के संचालक जतिन शर्मा द्वारा Orgenize किया जा रहा है. यदि आपमें से कोई जाने के इच्छुक है तो वे निचे दिए गये विवरण को पढ़कर हमसे संपर्क कर सकते है. यह Tour रविवार सुबह 08:00 बजे चैलचौक, मंडी हिमाचल प्रदेश से शुरू होगा.
आनंदपुर सहिव: आनन्दपुर साहिब (Anandpur Sahib) भारत के पंजाब राज्य के रूपनगर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। यह शिवालिक पर्वतमाला के चरणों में सतलुज नदी के समीप स्थित है। आनन्दपुर साहिब सिख धर्म से सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यहाँ दो अंतिम सिख गुरु, श्री गुरु तेग बहादुर जी और श्री गुरु गोविंद सिंह जी, रहे थे और यहीं सन् 1699 में गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना करी थी। यहाँ तख्त श्री केसगढ़ साहिब है, जो सिख धर्म के पाँच तख्तों में से तीसरा है। यहाँ बसंत होला मोहल्ला का उत्सव होता है, जिसमें भारी संख्या में सिख अनुयायी एकत्र होते हैं।

इतिहास: आनन्दपुर साहिब से पहले यह एक माखोवाल नाम गांव था, जो कहलूर रियासत (वर्तमान हिमाचल प्रदेश) के अंतर्गत आता था। जब सिखों के नवें गुरू गुरु तेग़ बहादुर को कहलूर ने राजा ने अपनी रियासत में शरण दी, तब राजा ने गुरु साहिब को १६६५ में इस जगह बसाया। तब गुरु जी ने इस जगह का नाम माखोवाल से बदल कर चक्क नानकी रखा। फिर बाद में इस जगह का नाम आनन्दपुर पड़ा।
विरासत-ए-खालसा: विरासत-ए-खालसा सिख धर्म का एक संग्रहालय है, जो भारत के पंजाब राज्य की राजधानी चंडीगढ़ के पास पवित्र शहर आनंदपुर साहिब में स्थित है। संग्रहालय सिख इतिहास के 500 साल और खालसा के जन्म की 300 वीं वर्षगांठ के जश्न मे बनया गया, दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखित शास्त्रों के आधार पर। यह पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। इसके परिणामस्वरूप इमारत के वातावरण में धर्म और उभरती हुई जरूरतों के बीच परामर्श होता है। एक ओर यह स्थानीय लोगों द्वारा विरासत की भावना को पोषित करने साथ-साथ हाथ के शिल्प को बढ़ावा देता है, दूसरी ओर यह मौजूदा शहरीवाद के विशाल हस्तक्षेप से अनन्तता को याद करता है जो दृश्यमान शहरीवाद से उत्पन्न दुविधा की एक अवस्था है।

क्या रहा खास?
विरासत-ए-खालसा संग्रहालय में सबसे ज्यादा पर्यटकों की संख्या रिकॉर्ड की गई है और इसी वजह से ये संग्राहलय देश के सभी संग्रहालयों के बीच पहले पायदान पर अपनी जगह बना चुका है। कहा जाता है इस संग्रहालय में हर रोज़ 5000 लोग इतिहास को दोबारा जीवित होता हुआ देखने आते हैं। यानी अपने 7 साल के सफर में ही ये संग्रहालय अब तक 97 लाख पर्यटकों को पंजाब और खालसा संप्रदाय की वीरता की कहांनियाँ बयान कर चुका है।

क्या है विरासत-ए- खालसा संग्रहालय?
इस संग्रहालय को 2011 में खालसा पंथ की 300वीं सालगिराह के मौके पर बनवाया गया था। खालसा पंथ सिख शूरवीरों का वो खास संप्रदाय है जिसे खुद सिखों के आखिरी धार्मिक गुरू - गुरू गोबिंद सिंह ने बनाया था। खालसा समुदाय के गठन वाले दिन को ही आज पंजाब समेत देश के उत्तरी इलाके में बैसाखी के रूप में मनाया जाता है।

6500 एकड़ के एरिया में फैला हुआ है ये संग्रहालय हस्तकला के साथ आधुनिक टेक्नोलॉजी के जरिए सिख धर्म और पंजाब की संसकृति के बारे में देश-विदेश से आए सैलानियों को रुबरू करवाता है। एक इज़राइली आर्किटेक्ट मोशे सफी द्वारा डिजाइन किया गया ये म्युजियम अपनी भव्यता और इतिहास के रंग में आपको भी रंग देगा।

इस विशाल संग्रहालय में घूमते हुए आपको पता भी नहीं लगता कि कितनी आसानी और सरलता के साथ आप सिख इतिहास के 550 साल लंबे सफर को तय कर चुके हैं। इस संग्रहालय में कुल 27 गैलरी बनी हुई हैं जिन्हें दो भागों में बांटा गया है। पहला भाग आपको सिखों के पहले गुरू- गुरु नानक के वक्त से शुरू होकर सिखों की धार्मिक ग्रंथ- गुरूग्रंथ साहिब के स्थापित होने तक की कहानी बयान करता है। वहीं दूसरा भाग सफर को आगे बढ़ाते हुए बाबा बंदा सिंह बहादुर और महाराजा रंजीत सिंह के शौर्य की गाथाएं सुनाता है।

कैसे जाएँगे?

यह पूरा सफ़र सड़क मार्ग से रहने वाला है. जोकि नॉन-AC बस में रहने बाला है. जिसमे बस का किराया प्रति सवारी 800 रूपये रहेगा. इसके साथ ही दोपहर का खाना भी इसमें Include होगा. इसके अतिरिक्त यदि आप कुछ और खर्च करना चाहते है तो वे अलग से रहेगा.

प्रमुख दर्शनीय स्थान:

No Name Time
1 आनंदपुर सहिव दोपहर
2 दोपहर का भोजनदोपहर
3 विरासत-ए-खालसा खाना खाने के बाद

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